Tuesday 31 August 2010
Monday 30 August 2010
"जीवन एक उलझन..!!"
देखते थे कितने ही खवाब हम बचपन में
खवाबों को पूरा करने की तमन्ना थी मन में
दूसरों के भी खवाबों को करते थे साकार
बिना किसी कपट को रखे अपने नियत में
अब ख़त्म हो गया है वो सारा भोलापन
हाथ कठोर हो गए बचपन को बड़ा करने में
अब तो बस इस हाथ में पत्थर ही उठते हैं
दूसरों के सपनों पर फेंकने के लिए
कितना मतलबी हो जाता है ये जवानी
प़र - सुख में शामिल होना मुश्किल होता अब
निंदा इर्ष्या का मल ह्रदय में जानू न जमा कब
हर वक़्त एक उधेड़बुन में व्यस्त रहता हूँ अब
अब कोई इच्छा नहीं रही बाकी इस जीवन से
जीवन के इस अनसुलझे जाल में उलझ गया हूँ मैं
बस इंतज़ार करता हूँ अपने बूढाप॓ का मैं
कम से कम मौत आने प़र, इस मायाजाल से मिले मुक्ति
खवाबों को पूरा करने की तमन्ना थी मन में
दूसरों के भी खवाबों को करते थे साकार
बिना किसी कपट को रखे अपने नियत में
अब ख़त्म हो गया है वो सारा भोलापन
हाथ कठोर हो गए बचपन को बड़ा करने में
अब तो बस इस हाथ में पत्थर ही उठते हैं
दूसरों के सपनों पर फेंकने के लिए
कितना मतलबी हो जाता है ये जवानी
प़र - सुख में शामिल होना मुश्किल होता अब
निंदा इर्ष्या का मल ह्रदय में जानू न जमा कब
हर वक़्त एक उधेड़बुन में व्यस्त रहता हूँ अब
अब कोई इच्छा नहीं रही बाकी इस जीवन से
जीवन के इस अनसुलझे जाल में उलझ गया हूँ मैं
बस इंतज़ार करता हूँ अपने बूढाप॓ का मैं
कम से कम मौत आने प़र, इस मायाजाल से मिले मुक्ति
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Sunday 29 August 2010
"मेरा दिल..!!"
अकसर मेरा दिल ---
मुझे शांत रहने को कहता है ,
खुद में ही खो जाऊं..
ऐसा मेरा मन भी होता है !
पर कुछ तो है तुम में
जिस कारण हमेशा ये
सिर्फ तुमसे बातें करना चाहता है
हर वक़्त इसे तेरा इंतज़ार रहता है
तुम नहीं होती हो तो
तुम्हें ढूंढता रहता है
जब तुम आती हो तो
कभी शांत न बैठता है
कुछ तो है तुम में
जो अकसर इसे हंसा जाता है
तुम सिर्फ पास बैठी रहो
तुम सिर्फ पास बैठी रहो
बस ये खुश हो जाता है
Saturday 21 August 2010
"ज़िन्दगी..!!"
आम आदमी की ज़िन्दगी,
क्या पूरी ज़िन्दगी है,
या अधूरी ज़िन्दगी |
कहीं न कहीं इस ज़िन्दगी का -
कुछ ठहराव तो होगा,
कहीं न कहीं इस ज़िन्दगी का-
कुछ अर्थ तो होगा |
इसके आर-पार के वजूद को,
हर किसी ने गौर से देखा होगा |
इस ज़िन्दगी को अनेकों ने अनेक बार ,
नया नाम और नया पता दिया होगा..
अनेक किताब लिखी गयीं ...
इसके फ़साने पर..
कोई अधूरी और कुछ पूरी;
मगर ज़िन्दगी के गहराई के--
फ़साने उसी तरह रह गए ,
जैसे कोरे कागज के पन्ने..!!!
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Wednesday 18 August 2010
"गुनहगार..!!"
मैंने जब तुम्हें पहली बार देखा तो
दिल ने कहा तुम बहुत खुबसूरत हो
पर आज मैंने जाना कि...
तुम्हारे अन्दर एक और तुम है ,
जो तुमसे भी ज्यादा सुन्दर है..
मैं तो मुर्ख था, और शायद...
तुम्हारा गुनहगार भी..--
कभी तुमने---
बिलकुल कोरा काग़ज देखा है ..!
नहीं...-- तो देख लो मुझे ..
मैं भी बिलकुल ख़ाली और बेदाग़ हूँ
जिसमे कोई रंग नहीं, मायने नहीं, मकसद नहीं
दूर से तो एक जलूस सा नज़र आता है
पर नजदीक से देखता हूँ तो --
मुझे अपनी ही अर्थी नज़र आती है..!
जिसे मैं अपने ही कंधे पर उठाये --
जाने कहाँ-से-कहाँ लिए जा रहा हूँ..!
सही में अब जाना---
मैं तुम्हारा सबसे बड़ा गुनहगार हूँ...!!!
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Tuesday 17 August 2010
"लगन..!!"
मैं ना उनके नाम कि, व्याख्या करूँगा,
ना उनकी प्रशंसा करूँगा, ना तो उन्हें पुकारूँगा,
मैं तो सिर्फ टेर लगाऊंगा, मैं तो सिर्फ आवाज़ दूंगा-
वैसी ही आवाज़--
जैसे रेगिस्तान में भटकता हुआ...--प्यासा आदमी,
पानी कि बूँद को पुकारता है
जैसे रेगिस्तान में भटकता हुआ...--प्यासा आदमी,
पानी कि बूँद को पुकारता है
और वो बूँद उन क्षणों के अन्दर---
उसका खुदा, उसका इश्वर, उसका ब्रह्म बन जाती है !!
Sunday 15 August 2010
जाग..!!
जाग ज़ग के नव युव
जीवन बिता जा रहा है
तू कहाँ खोया है ---
अभी भी तू मंजिल खोज रहा है ...
अब रास्ते बना -- उस पथ पर --
एक दिशा में चलता जा
मंजिल करीब आएगी..!!!
अब न जागा तो कब जागेगा --
बचपन बीता बचपने में
बुढ़ापा आएगा तो आता ही जायेगा
जवानी भी क्या- यूँ ही सो कर बिताएगा
जन्म लिया है इसे सार्थक कर
मोह-माया से स्वयं को पृथक कर
जवानी महबूब की बाहों में व्यर्थ न कर
जवानी तो जोश है ---
उठ और अपनी मंजिल की ओर बढ़..!!
देख -- सारा ज़ग तुम्हें बुला रहा है
तू कहाँ भटक रहा है
जाग ज़ग के नव युव...
जीवन बीता जा रहा है...!!!!
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परिवर्तन..!!
इस बदलते ज़माने का,
अजीब ही लगता है हाल !
हर इंसान काटने में लगा है..
जिस पर बैठा है वही डाल !!
क़यामत अब न आई,
तो कब आएगी..
हालात देख कर,
शर्म को भी शर्म आएगी..!!
लोग खुद अपने आस्तीनों में,
सांप छुपाने लगे हैं.!
ज़रा देखो तो--
मय्यतों में भी...
आदमी किराए पर आने लगे हैं..!!
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धुन..
ख़ुशी की खोज...
१५ अगस्त
"ख़ुशी की याद.."
ख़ुशी - है जो हर कोई चाहता है..
किन्तु वास्तव में कुछ को ही मिल पाता है !!
ख़ुशी है जो हर गलत को सही कर देता है,
और इंसान बिना अफ़सोस के जीता है!!
फिर क्यूँ ख़ुशी पाने को करते हैं अत्याचार..
जब हम सभी करते हैं इसे इतना प्यार..
जीवन की सच्चाई को समझ गए अगर,
तो कम से कम ख़ुशी आएगी अपने दर..!!
ख़ुशी तो तुम में से कई के पास आती है..
और तुम्हें लगता है वो हमेशा रहे..
ख़ुशी तो तुम्हें जीना सिखाती है..
बुरे सपने के बिना नींद देती है!!
तुम्हें यदि नहीं चाहिए वो ख़ुशी..
तो मुझे दे दो वो ख़ुशी,
तुम रोओगे जब ख़ुशी जाएगी..
एहसास जब अकेलेपन का होगा..
तब ख़ुशी की याद आएगी..!!!
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ख़ुशी !!!
मैं चाहता हूँ --
ख़ुशी मुझे शक्ति दे !
ख़ुशी हमें सिखाता है,
जीवन का अर्थ क्या है !!
ख़ुशी- एक प्यारा एहसास,
एक कोमल चुम्बन !
एक सूरजमुखी -
जो जीवन को तकता है..
ख़ुशी- है सफलता की कुंजी,
जो तुम्हें हमेशा रखे ऊपर..
तुम- मेरी ख़ुशी हो..
जब मैं नाराज होता हूँ,
तुम मुझे मनाती हो...!
ख़ुशी नहीं है-
अपने जूनून को ख़त्म करने में,
ख़ुशी है -
किसी को पाने में...
जो तुम्हें प्यार दे ..!!
मुझे बस एक बात के लिए ख़ुशी है-
कि तुम हो !!
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"हक़...!!!"
तुम जो अगर, मुझ पर प्यार से.... अपना एक हक़ जता दो तो शायरी में जो मोहब्बत है, उसे ज़िंदा कर दूँ.... हम तो तेरी याद में ही जी लेंगे ... तु...
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जब मेरा चेहरा आईने में देखा तो.. अब वो मुझसा नहीं लगता है | पर कुछ जाना पहचाना सा लगता है ... इस शहर में हर शख़्स शायद ऐसा ही दिखता है |...
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उस पीली धूप में जब तुम पीले सलवार में चलती थी पीले दुपट्टे में जब......... तेज़ रौशनी से खुद के चेहरे को छुपाती थी याद है मुझे आज भी...
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वो कहते हैं कि अब वहां विराना होता है पहले जहाँ कभी महफिल सजती थी महखाने से भी ज्यादा जहाँ शोर होता था वहां अब शमशान...