Sunday 15 August 2010

परिवर्तन..!!

इस बदलते ज़माने का,
अजीब ही लगता है हाल !
हर इंसान काटने में लगा है..
जिस पर बैठा है वही डाल !!

क़यामत अब न आई,
तो कब आएगी..
हालात देख कर,
शर्म को भी शर्म आएगी..!!

लोग खुद अपने आस्तीनों में,
सांप छुपाने लगे हैं.!
ज़रा देखो तो--
मय्यतों में भी...
आदमी किराए पर आने लगे हैं..!!
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2 comments:

  1. वक़्त के साथ इंसान ने कितनी तबाही मचाई
    कहा धरती को उजाड़ के चाँद को बसायेंगे
    पर समंदर भी लेगा जब अपनी एक अंगड़ाई
    तो क्या बसायेंगे चाँद, खुद को इसी धरती पे गिरे पाएंगे

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  2. hmm good one Rakesh sir...

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"हक़...!!!"

 तुम जो अगर, मुझ पर प्यार से.... अपना एक हक़ जता दो  तो शायरी में जो मोहब्बत है,  उसे ज़िंदा कर दूँ....  हम तो तेरी याद में ही जी लेंगे ... तु...