Saturday 21 August 2010

"ज़िन्दगी..!!"

आम आदमी की ज़िन्दगी,
क्या पूरी ज़िन्दगी है,
या अधूरी ज़िन्दगी |
कहीं न कहीं इस ज़िन्दगी का -
कुछ ठहराव तो होगा,
कहीं न कहीं इस ज़िन्दगी का-
कुछ अर्थ तो होगा |
इसके आर-पार के वजूद को,
हर किसी ने गौर से देखा होगा |
इस ज़िन्दगी को अनेकों ने अनेक बार ,
नया नाम और नया पता दिया होगा..
अनेक किताब लिखी गयीं ...
इसके फ़साने पर..
कोई अधूरी और कुछ पूरी;
मगर ज़िन्दगी के गहराई के--
फ़साने उसी तरह रह गए ,
जैसे कोरे कागज के पन्ने..!!!
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2 comments:

  1. बहुत अच्छी प्रस्तुति संवेदनशील हृदयस्पर्शी मन के भावों को बहुत गहराई से लिखा है

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  2. ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है

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