क्यूंकि मैं भी तेरे जैसा हूँ ..
तन्हा भटक रहा हूँ - तेरी गलियों में
चुन रहा हूँ एक एक पल, इस विराने में
बाहर दिवाली हो रही है और
मेरे दीप में तेल नहीं है
मुझसे आखें मिलाये कौन
मैं तेरा आईना हूँ
सारी दुनिया देख रही है ----
लेकिन मैं तन्हा हूँ
दिल को समझाउं कैसे ---
इसलिए कभी --
रेत पर लिखता हूँ और,
कभी लिखता हूँ हवा पर ..
कभी लिखता हूँ हवा पर ..
अकेला चल रहा हूँ जिंदगी में,
कोई नहीं है रोकने वाला ..
तेरे जैसा मैं भी हूँ मतवाला !!
इसलिए --
मैं अपने धुन में रहता हूँ.. !!!
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बहुत दिन बाद पढ़ी यह गज़ल...गुलाम अली की आवाज कान में गूंज रही है. इसका रचयिता कौन है, उसका नाम बतायें.
ReplyDeleteअपनी धुन में रहता हूँ,मैं भी तेरे जैसा हूँ.....ओ पिछली रुत के साथी,अब के बरस मैं तन्हा हूँ.....तेरी गली में सारा दिन,दुःख के कंकर चुनता हूँ....."
ReplyDeletesuruaati kuch panktiyan नासिर काज़मी se prerit..
ReplyDeletehttp://starturl.com/lscsj