माँ को मॅाम, बाबूजी को पॉप बनाया,
और अपने संस्कार ही भूल गए !
पेट को पिज्जा, बुर्गेर और कोला खिलाया,
और अपना स्वादिस्ट भोजन ही भूल गए !
सभी खुद में हैं ऐसे व्यस्त कि ,
हिंदी को राष्ट्रीय भाषा बनाना भूल गए !
जींस का ऐसा चला ज़माना कि ,
स्वदेशी होने का एहसास भूल गए !
ये कैसा गुलाम बनाया कि ,
हम अपनी भाषा बोलना भूल गए !
अपने देश में ही ऐसे तिरस्कारा कि ,
हम हिंदी होने का एहसास भूल गए !
----------*----------
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
"हक़...!!!"
तुम जो अगर, मुझ पर प्यार से.... अपना एक हक़ जता दो तो शायरी में जो मोहब्बत है, उसे ज़िंदा कर दूँ.... हम तो तेरी याद में ही जी लेंगे ... तु...
-
जब मेरा चेहरा आईने में देखा तो.. अब वो मुझसा नहीं लगता है | पर कुछ जाना पहचाना सा लगता है ... इस शहर में हर शख़्स शायद ऐसा ही दिखता है |...
-
मेरी चांदनी.. तेरे चेहरे की खिलती हंसी देख..., सुबह आज हसीन दिख रही है ! तेरी जुल्फों में फंसा वो पानी का बूँद , जैसे ओंस की तरह चमक रह...
-
एक ख़ामोश रात में तनहा दोस्तों से दूर आखें बंद कर एक बार सोचा तुमको मैंने... ये अकेली ख़ामोश रात और आखों से निकलते वो ख़ामोश आँसूं- एक ख...
No comments:
Post a Comment