Sunday 30 January 2011

"कलम - ...!!"



ऐ कलम मुझे माफ़ कर
जो मैं तुम्हें छोड़ कर 
इस संभ्रम दुनिया में आया
सोचा छोड़ कर तुझे मैं जी लूँगा 
इस दुनिया में
पर यहाँ आकर समझ में आया
कि ये पेचीदगी शायद 
मुझसे सुलझेगी नहीं
ये एक ऐसी अत्यंत अनंत डोर है
जो खुद से उलझती जाती है 
इसे सुलझाने की कोशिश में 
मैं खुद ही इसमें उलझ कर रह गया
खुल तो नहीं पायीं ये सारी उलझनें 
पर अब इस रिश्ते नाते के बंधन को 
तोड़ कर आया हूँ मैं, तेरे शरण में 
दुबारा पुनः  एक बार
दे दो मुझे मेरी उँगलियों पर फिर से
वो काली स्याही के निशान
वो कोरे कागज के पन्ने
और किताबों की बारात
सजाना चाहता हूँ मैं फिर अपनी दुनिया 
इसी शब्दों के बीच में
बेवकूफ था मैं जो इसकी बादशाहत 
छोड़कर गया था इस निष्ठूर संसार में
इसलिए तेरे शरण में
लौट आया मैं सुमन , ऐ-- 'कलम' 
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Friday 21 January 2011

"दोस्त..!!"


दोस्त..
यूँ तो आइना रोज़ देखता हूँ ,
अपने चेहरे को रोज़ सवांरता हूँ ...
रोज़ वही शख्स दिखता है आईने में ,
कुछ खोया हुआ सा अपने ख्यालों में !

पर आज अचानक ऐसा लगा मानो --
आईने ने मुझे देखा हो पहली बार ...
अपने ही अक्स को देखकर मैं घबराया ...
खुद को अपने ही सामने बेबस पाया !

कुछ ऐसी भूली हुई तस्वीरें दिखीं...
भावनाएं फिर मुझसे ना छुपीं ,
रो पड़ा मैं उसी वक़्त कि ,
सारी तस्वीरें गीली हो चलीं  ...

जिनका भी साथ जीवन में पाया ,
साथ जिनके मैंने समय बिताया ...
जाने कहाँ खो गए वो संगे - साथी ,
मैं उनसे दूर राह पर निकल आया !

मुझे माफ़ करना मेरे दोस्तों कि--
समय ने मुझे कुछ ऐसे दौड़ाया ....
तुमसे एक बार दुबारा मिल सकूँ ,
इसका भी मैंने आस गवांया !

अब तक का सफ़र हुआ सुखद ....
है शुक्रिया तुम सभी का ....
जिसने भी इस जीवन पथ पर ---
है मेरा साथ निभाया ....!!
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Wednesday 19 January 2011

"मेरी चांदनी..!!!"

मेरी चांदनी..
तेरे चेहरे की खिलती हंसी देख...,
सुबह  आज  हसीन दिख रही है !

तेरी जुल्फों में फंसा वो पानी का बूँद ,
जैसे ओंस की तरह चमक रही है !

अपनी नज़रों से यूँ न देखो मुझे ,
कि एक अजब सी मदहोसी छा रही है !

तेरे आँचल को तुमने कुछ यूँ लहराया ,
कि बसंती हवा की बयार चल रही है !

अपने कदम संभाल कर तुम चलना ,
वरना तेरी चाल पर हम बेमौत मारे जायेंगे !

आज तेरी तारीफ़ मैंने चाँद से कुछ यूँ की ,
कि वो तेरे दीदार को बेचैन हो गया...!

तुम आज रात पर्दा करके बाहर निकलना ,
नहीं तो चाँद की नज़र 'मेरी चांदनी' को लग जाएगी....!!!!
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Tuesday 18 January 2011

"तन्हाई से.... फिर तन्हाई तक...!!!"

"तन्हाई से.... फिर तन्हाई तक...!!!"

तूने ना कुछ  ख़ता  की.. 
ना मुझसे कोई  गलती हुई !
बस वक़्त ही मुझसे खफा हो गयी --
जो ये एहसास मुझे देर से हुई !!

तुमसे ना कोई शिकवा है ...
ना तुझसे कोई शिकायत करूँगा --
इस पल ने जो मीठे एहसास दिए..
उसके लिए तुम्हारा शुक्रिया कहूँगा !!

उन दिनों जब मैं तुम्हें सोचने  लगा--
मेरी दुनिया और सपने  बदल गयी..
तब मुझे पता चला ---
किसी को चाहना क्या होता है... !!

थोडा दर्द तो होगा मुझे...
इस एहसास को भुलाने में ! 
पर भरोसा है मुझे खुद पर --
कि संभल जाऊंगा मैं एक दिन !!
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Sunday 9 January 2011

"बेबसी...!!!"

"बेबसी...!!!"



आज कोरे काजग में क्यों...
अपने जीवन का कोरापन दिखता है |
बैठा था कुछ लिखने फ़साने जीवन के..
क्यों मेरे आंसुओं से ये गिला हो जाता है ||

हसरतें बहुत हैं उमड़ती मेरे अन्दर--
पर हो गया हूँ मैं बेबस इस तरह कि...
इस ठूंठ दुनिया में ------
जिंदगी एक छांव की तालाश करती  है ||

अपनों  ने भी ठुकराया ऐसे कि....
अब किसी पर आस होती नहीं है |
दे दो मुझे सहारा एक  बैसाखी का...
कि मेरे पैर भी अब लाचार दिखते हैं |||
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Wednesday 5 January 2011

"ज़िन्दगी-- तुझसे आगे...!!!"

"ज़िन्दगी-- तुझसे आगे...!!!"
जीवन के इस आपाधापी में मैं..
कुछ पल चलता, कुछ पल रुकता मगर
इस कुछ- पल में.. ज़िन्दगी मुझसे आगे बढ जाती,
फिर भी, मैं हर पल मुस्कुराता....
ज़िन्दगी मुझपर होकर हैरान
बोली ----
तुम हार रहे हो फिर भी मुस्कुराते हो नादान !!!

मैं अपनी हार पर या किसी के जीत पर हूँ अटल 
अपनी चाल में चलना है मुझे ये जीवन
आज तू ज़िन्दगी जीत जाएगी...
पर एक दिन एक ऐसी सीमा आएगी कि
तू थक कर, एक कदम आगे भी न जा पाएगी
तब भी मैं रहूँगा अचल
मुस्कुराते हुए ही,
ऐ ज़िन्दगी- जाऊँगा तुझसे आगे निकल
और तू करेगी मेरा इंतज़ार
लौट कर मैं न आऊंगा और
उस अलग संसार में भी मैं मुस्कुराऊंगा
फिर निकल जाऊंगा नए एक ऐसे सफ़र पर
जहाँ अनजान रास्ते और अनजान हमसफ़र मेरी राह तकेंगी !!
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Monday 3 January 2011

"तन्हाई..!!!"

तन्हाई

चलता था नंगे पैर सागर किनारे, साथ तन्हाई चलती थी
लहरों की आवाज़ सुन तन्हाई भी अंगड़ाई लेती थी
पर सागर की गहराइयों से डर मेरे अन्दर ही रहती थी
मेरा हर वक़्त पीछा करती थी मेरी तन्हाई

फिर क्यों तुमने मेरी तन्हाई को छुआ
अब ये शिकायत करती है मुझसे
तन्हा नहीं रहना अब मेरी तन्हाई को
तेरे साथ कि ये हर वक़्त गुजारिश करती है

तेरा चेहरा इसे अब चाँद नज़र आता है
पास बैठी रहो बस इसे निहारना चाहता है
तुम बिखेर देती हो वो चांदनी कि
मेरी तन्हाई को एक साथी मिल जाता है

कि अक्सर मेरी तन्हाई मुझसे शिकायत करती है
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"हक़...!!!"

 तुम जो अगर, मुझ पर प्यार से.... अपना एक हक़ जता दो  तो शायरी में जो मोहब्बत है,  उसे ज़िंदा कर दूँ....  हम तो तेरी याद में ही जी लेंगे ... तु...