Friday 16 December 2011

"तुम..!!"

तुम अब यूँ 
खामोश न रहा करो कि 
मेरी तन्हाइयों को कहीं 
तेरी खामोशियों से 
इश्क न हो जाये

खामखा आईने में देखकर
खुद पर इतराती हो
ये तो तेरे हर वज़ूद को
झुठला देती है
मेरे बिना तो तुम
खुद को संवार भी
नहीं पाती हो

ये कैसी मझधार है
कि खुद के अक्स से ही
जूझ रहा हूँ मैं
एक तिनके की आस में
बस तेरी ही राह
ओट रहा हूँ मैं...

----------*----------

No comments:

Post a Comment

"हक़...!!!"

 तुम जो अगर, मुझ पर प्यार से.... अपना एक हक़ जता दो  तो शायरी में जो मोहब्बत है,  उसे ज़िंदा कर दूँ....  हम तो तेरी याद में ही जी लेंगे ... तु...