तुम अब यूँ
खामोश न रहा करो कि
मेरी तन्हाइयों को कहीं
तेरी खामोशियों से
इश्क न हो जाये
खामखा आईने में देखकर
खुद पर इतराती हो
ये तो तेरे हर वज़ूद को
झुठला देती है
मेरे बिना तो तुम
खुद को संवार भी
नहीं पाती हो
ये कैसी मझधार है
कि खुद के अक्स से ही
जूझ रहा हूँ मैं
एक तिनके की आस में
बस तेरी ही राह
ओट रहा हूँ मैं...
----------*----------
खामोश न रहा करो कि
मेरी तन्हाइयों को कहीं
तेरी खामोशियों से
इश्क न हो जाये
खामखा आईने में देखकर
खुद पर इतराती हो
ये तो तेरे हर वज़ूद को
झुठला देती है
मेरे बिना तो तुम
खुद को संवार भी
नहीं पाती हो
ये कैसी मझधार है
कि खुद के अक्स से ही
जूझ रहा हूँ मैं
एक तिनके की आस में
बस तेरी ही राह
ओट रहा हूँ मैं...
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