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"हक़...!!!"
तुम जो अगर, मुझ पर प्यार से.... अपना एक हक़ जता दो तो शायरी में जो मोहब्बत है, उसे ज़िंदा कर दूँ.... हम तो तेरी याद में ही जी लेंगे ... तु...
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जब मेरा चेहरा आईने में देखा तो.. अब वो मुझसा नहीं लगता है | पर कुछ जाना पहचाना सा लगता है ... इस शहर में हर शख़्स शायद ऐसा ही दिखता है |...
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उस पीली धूप में जब तुम पीले सलवार में चलती थी पीले दुपट्टे में जब......... तेज़ रौशनी से खुद के चेहरे को छुपाती थी याद है मुझे आज भी...
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मेरी चांदनी.. तेरे चेहरे की खिलती हंसी देख..., सुबह आज हसीन दिख रही है ! तेरी जुल्फों में फंसा वो पानी का बूँद , जैसे ओंस की तरह चमक रह...
बहुत खूब
ReplyDeleteमूर्तियां भी सजीव होंगी कभी
खड़ा हूँ किसी मूर्ति की तरह
ReplyDeleteमौसम आते हैं... मुझे छू कर गुजर जाते हैं.!!!!
Wah Wah!!!!
खड़ा हूँ किसी मूर्ति की तरह
ReplyDeleteमौसम आते हैं... मुझे छू कर गुजर जाते हैं.!!!!
Wah Wah!!!
बहुत अच्छा, बढिया लिखती हैं आप। आभार
ReplyDeleteबहुत प्यारी रचना....
ReplyDeleteसुन्दर लेखन..
अनु