कुंवारी नींद जब चल कर आती है
आखें बन जाती हैं मेरी स्वप्न नयना
कौन जाने कल सवेरा हो न हो
इस संसार में है निश्चित कुछ भी नहीं
सिर्फ अनिश्चित है, निश्चित हर क्षण में यहाँ
ये तो पता नहीं कि हम फिर मिलेंगे
अभी का ये वक़्त हैं अपना लो मुझे
देख लो आज चाँद को आसमान में
कौन जाने कल ये रात हो न हो
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