Wednesday 9 May 2012

" खामोश मूर्ति..!!"



एक फ़साना शुरू होने से पहले ही,
जाने क्यूँ तू मुझसे रूठ गयी
सोचा था कुछ दूर साथ चलेंगे,
उससे पहले ही तुम चुप हो गयी 
अब तो बस  खामोश हूँ...
खड़ा हूँ किसी मूर्ति की तरह
मौसम आते हैं... मुझे छू कर गुजर जाते हैं.!!!!
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"हक़...!!!"

 तुम जो अगर, मुझ पर प्यार से.... अपना एक हक़ जता दो  तो शायरी में जो मोहब्बत है,  उसे ज़िंदा कर दूँ....  हम तो तेरी याद में ही जी लेंगे ... तु...