ज़िन्दगी तू चलते चलते
ये कैसी खामोश जगह पर ले आई है
दूर दूर तक, कोई दिखता नहीं
हर तरफ सिर्फ अन्धकार ही छायी है
खड़ा हूँ .. अकेला इस ख़ामोशी में
ना जाने किसका ... इंतज़ार है
कल जब तेरे संग चला था इस सफ़र में
सोचा ना था की ऐसा भी कोई मोड़ आएगा
ज़िन्दगी तू तो कभी....
इतनी शांत नहीं थी ... इतनी खामोश नहीं थी
फिर ये कैसा पड़ाव है कि
तूने अपना स्वाभाव ही बदल दिया
तू जो यूँ दूर जा रही है मुझसे
तो दूर हो रही है सारी उमंग
अभी भी मुड़ कर कभी कंभी
तुझे आवाज़ देता हूँ ...
एक नए जोश से तेरा ..
हर वक़्त इंतज़ार करता हूँ कि
कभी तो फिर से तू आएगी ...
वो उमंग वो ताजगी संग लाएगी ....
चलेगी मेरे संग तू फिर से झूमते हुए
मौज की गलियों में ..फिर से
खुशियों का डेरा लगाएगी ...
आ कि तेरा अब भी .. इंतज़ार है ज़िन्दगी ...
वरना ...
ये मौत तो एक दिन ...
संग अपने लेकर ही जायेगी .....
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