तब ...
घर से जब बाहर निकलता था
कब दोपहर हुई ...कब शाम हुई
रात ने कब घेरा पता ही नहीं चलता था
और वापस लौटना ही भूल जाता था
तब ...
माँ की आवाज़ आती ...
बेटा रात बहुत हो गयी .. घर आ जा ..
मानो घर खुद शाम में
मुझे ढूंढ़ कर वापस बुला रहा हो…
अब...
घर से जब बाहर निकलता हूँ ...
दोपहर होती है .. शाम होती है…
रात की अंधियारी अपने आगोश में लेती है…
और अक्सर भटक जाता हूँ ....
क्यूंकि ...
ना अब घर मुझे ढूंढ़ता है ..
और ना ही कोई आवाज़ बुलाती है…
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Bahut Badhiya.Iskeye kehta hun saadi kar le...
ReplyDeletehe he he... Abhi samay hai bhai....
Deletebahut sundar rachana....!!!
ReplyDeleteआपने तो बचपन याद दिला दी ...
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