Thursday 31 July 2014

"जब हम बच्चे थे...!!"


कुछ तो है जो कि हम कहीं रखकर भूल आये हैं ...
अब ज़िन्दगी भर उसे खोजते रहेंगे ...
पर ना वो चीज़ मिलेगी.... और ना ही उसकी याद मिटेगी
अब ये सोचता हूँ कि....
बड़े होकर भी क्या ख़ाक ज़िन्दगी जी रहे हैं....
वो दिन ही अच्छे थे.... जब हम बच्चे थे....
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Tuesday 22 July 2014

"ख्यालों में ...!!"

बढ़ती हुई सी ये ज़िन्दगी
और गिरता हुआ वो मकान
बिछड़ता हुआ अपना बचपन
खोती हुई सी ये  मासूमियत
जाने क्यों ……
अक्सर, ये बस ख्यालों में आते हैं ………
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Sunday 20 July 2014

"ज़िद्द...!!"


एक तुम थे, जो तुम पर ही रह गए...
हम भी कुछ कम नहीं थे 
ज़िद्द तो हमने भी की थी.. 
और हम भी, हम पर ही रह गए ...

अब देखो... ये क्या हुआ 
न तुम हारे..  न मैं हारा... 
पर जीता भी तो कौन 
ये दूरियाँ जीतीं.... 
और इतनी लम्बी जीतीं कि 
अब न  तेरी आवाज़ आती है....
न ही तुम मुझे सुन पाती हो....

रोशनी भी कुछ कम हो रही है 
साये गहरा  रहे हैं 
एक ख़ामोशी चुपके से 
इस अँधियारे ज़िन्दगी में 
छा रही है 

दूरियाँ बढ़तीं जा रही हैं...
फिर भी ज़िद्द है दोनों को अभी भी... 
न तुम , तुम से हट  रहे हो... 
न हम , हम से हट रहे हैं... 
ना जाने ये ज़िद्द क्यों है… 
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Sunday 18 May 2014

"दुआ...!!"






बिछड़ के तुझसे...
सज़दे में, ये दुआ करता हूँ 
कि तुम खुश रहो हर पल 
क्यूंकि... 
अक्सर तुम ये कहते थे मुझसे  - 
कि मैं जब पास रहता हूँ तेरे- 
तब ही तुझे ख़ुशी मिलती है!! 
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Sunday 27 April 2014

"मकान...!!!"




मिली थी कितने बरसों बाद
वो आकर मेरे मकान में...
बोली कुछ भी तो नहीं बदला 
यहाँ इतने साल के दरम्यान में 
उससे कहा मैंने....
शायर का घर है... मोहतरमा 
ना मकान बदलता है कभी ...
ना  सामान बदलता है कभी ...
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"हक़...!!!"

 तुम जो अगर, मुझ पर प्यार से.... अपना एक हक़ जता दो  तो शायरी में जो मोहब्बत है,  उसे ज़िंदा कर दूँ....  हम तो तेरी याद में ही जी लेंगे ... तु...