Sunday 27 April 2014

"मकान...!!!"




मिली थी कितने बरसों बाद
वो आकर मेरे मकान में...
बोली कुछ भी तो नहीं बदला 
यहाँ इतने साल के दरम्यान में 
उससे कहा मैंने....
शायर का घर है... मोहतरमा 
ना मकान बदलता है कभी ...
ना  सामान बदलता है कभी ...
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"हक़...!!!"

 तुम जो अगर, मुझ पर प्यार से.... अपना एक हक़ जता दो  तो शायरी में जो मोहब्बत है,  उसे ज़िंदा कर दूँ....  हम तो तेरी याद में ही जी लेंगे ... तु...