मैं और मेरे अंदर का मैं
मारता हूँ पल पल एक मैं को
न जाने फिर भी
ज़िन्दा हैं कितने मैं
ज़िन्दा हैं अभी भी
मेरे अंदर मेरा मैं
----------*----------
मारता हूँ पल पल एक मैं को
न जाने फिर भी
ज़िन्दा हैं कितने मैं
ज़िन्दा हैं अभी भी
मेरे अंदर मेरा मैं
----------*----------
Nice collection of poems
ReplyDelete