जब मेरा चेहरा आईने में देखा तो..
अब वो मुझसा नहीं लगता है |
पर कुछ जाना पहचाना सा लगता है ...
इस शहर में हर शख़्स शायद ऐसा ही दिखता है |
समय के साथ दुनिया ने इस गढ़ा है -
कुछ झूठ, कुछ छल, कुछ चालाकी ...
कुछ बेईमानी, कुछ मैं से इसे सजाया है ...
एक मासूम को इस उम्र ने एक मुखौटा पहनाया है ||
———*———
अब वो मुझसा नहीं लगता है |
पर कुछ जाना पहचाना सा लगता है ...
इस शहर में हर शख़्स शायद ऐसा ही दिखता है |
समय के साथ दुनिया ने इस गढ़ा है -
कुछ झूठ, कुछ छल, कुछ चालाकी ...
कुछ बेईमानी, कुछ मैं से इसे सजाया है ...
एक मासूम को इस उम्र ने एक मुखौटा पहनाया है ||
———*———