Monday 23 December 2013

"दोबारा...!!!"


ज़िन्दगी के सफ़र में,
सोचा कि...
फिर तेरे शहर से गुजरूं
उन यादों को पलटूं,
कि तुझे फिर से ज़िंदा करूँ-
एक शाम तेरे यहाँ बिताना है ,
फिर सुबह उठकर निकल जाना है |
तुम मिलोगी तो नहीं वहाँ--
जहाँ हम अक्सर मिला करते थे ,
पर बैठूंगा मैं तेरे इंतज़ार में..
उस शान्त नदी के किनारे ..
इस उम्मीद में कि शायद दूर तेरे देश से -
कोई चिड़िया... कोई पैगाम लाये ..
                                                                                       चुन-चुन कर के मुझे सुनाये ..
                                                                                       और तेरा हाल बताए ||
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<<E/Hinglish>>
Zindagi ke safar me,
Socha ki...
Fir tere shahar se gujarun
Un yaadon ko palatun,
ki tujhe fir se zinda karun--
ek shaam tere yahan bitana hai ,
fir subah uthakar nikal jana hai..
tum milogi to nahi wahan --
jahan hum aksar mila karte the ,
par baithunga main tere intezar me..
us shaant nadi ke kinaare ..
is ummid me ki shayad dur-- tere desh se --
koi chidiya... koi paigaam laaye...
chun-chun kar ke mujhe sunaaye...
aur tera haal bataye ...
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Sunday 11 August 2013

"घर बुलाता है...!!!"



तब ...
घर से जब बाहर निकलता था
कब दोपहर हुई ...कब शाम हुई
रात ने कब घेरा पता ही नहीं चलता था
और वापस लौटना ही भूल जाता था
तब ...
माँ की आवाज़ आती ...
बेटा रात बहुत हो गयी .. घर आ जा ..
मानो घर खुद शाम में
मुझे ढूंढ़ कर वापस बुला रहा हो…

अब...
घर से जब बाहर निकलता हूँ ...
दोपहर होती है .. शाम होती है… 
रात की अंधियारी अपने आगोश में लेती है… 
और अक्सर भटक जाता हूँ .... 
क्यूंकि ...
ना अब घर मुझे ढूंढ़ता है ..
और ना ही कोई आवाज़ बुलाती है… 
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Friday 2 August 2013

"खामोश ज़िन्दगी..!!!"



ज़िन्दगी तू चलते चलते 
ये कैसी खामोश जगह पर ले आई है 
दूर दूर तक, कोई दिखता नहीं 
हर तरफ सिर्फ अन्धकार ही छायी है 
खड़ा हूँ .. अकेला इस ख़ामोशी में 
ना जाने किसका ... इंतज़ार है 
कल जब तेरे संग चला था इस सफ़र में 
सोचा ना था की ऐसा भी कोई मोड़ आएगा
ज़िन्दगी तू तो कभी....
 इतनी शांत नहीं थी ... इतनी खामोश नहीं थी 
फिर ये कैसा पड़ाव है कि 
तूने अपना स्वाभाव ही बदल दिया 
तू जो यूँ दूर जा रही है मुझसे
तो दूर हो रही है सारी  उमंग 
अभी भी मुड़ कर कभी कंभी 
तुझे आवाज़ देता हूँ ...
एक नए जोश से तेरा ..
हर वक़्त इंतज़ार करता हूँ  कि 
कभी तो फिर से तू आएगी ...
वो उमंग वो ताजगी संग लाएगी ....
चलेगी मेरे संग तू फिर से झूमते हुए 
मौज की गलियों में ..फिर से 
खुशियों का डेरा लगाएगी ...
आ  कि तेरा अब भी .. इंतज़ार है ज़िन्दगी ...
वरना ...
ये मौत तो एक दिन ...
संग अपने लेकर ही जायेगी ..... 
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Monday 11 February 2013

"नज़र..!!"



यूँ ही चलते चलते जब 
किसी की नज़रों में देखता हूँ 
तो लगता है 
हर नज़र कुछ बोलती है
होंठ तो खिले होते हैं
पर पलकें नम होती हैं
और दिलों में कुछ सपनों के 
अधूरे रहने का गम होता है ।।
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"हक़...!!!"

 तुम जो अगर, मुझ पर प्यार से.... अपना एक हक़ जता दो  तो शायरी में जो मोहब्बत है,  उसे ज़िंदा कर दूँ....  हम तो तेरी याद में ही जी लेंगे ... तु...