एक दिन चला जाऊंगा मैं चुपके से...
पीछे छोड़ कर सभी को इस दुनिया से,
रूठना - मनाना सब रह जायेगा अधुरा...
कि बस मेरा शरीर रहेगा जलाने के लिए |
गरम शरद की बात ही क्या...
एक दिन तो जलना है चिता पर मुझे,
आग की लपटों से ऊँचा जाना है मुझे,
उठते धुएं से भी दूर निकलना है मुझे |
कर ले जितनी जिद्द करनी है तुझे...
मैं तो हर पल ही मुस्कुराऊंगा...
मना ले मुझे कि अभी भी वक़्त है तेरे पास,
बाद में क्या मेरी ख़ाक से दोस्ती निभाएगा ||
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