Monday 10 October 2011

"जिद्द..!!"



एक दिन चला जाऊंगा मैं चुपके से...
पीछे छोड़ कर सभी को इस दुनिया से,
रूठना - मनाना सब रह जायेगा अधुरा... 
कि बस मेरा शरीर रहेगा जलाने के लिए | 

गरम शरद की बात ही क्या...
एक दिन तो जलना है चिता पर मुझे,
आग की लपटों से ऊँचा जाना है मुझे,
उठते धुएं से भी दूर निकलना है मुझे |

कर ले जितनी जिद्द करनी है तुझे...
मैं तो हर पल ही मुस्कुराऊंगा...
मना ले मुझे कि अभी भी वक़्त है तेरे पास,
बाद में क्या मेरी ख़ाक से दोस्ती निभाएगा ||
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"हजारों ख्वाहिशें..!!"



बिखरते ख्वाबों को देखा 
सिसकते जज्बातों को देखा 
रुठती हुई खुशियाँ देखीं,
बंद पलकों से
टूटते हुए अरमानों को देखा 

अपनों का बेगानापन देखा
परायों का अपनापन देखा
रिश्तों की उलझन देखीं,
रूकती साँसों ने 
हौले से ज़िन्दगी को मुस्कुराते देखा...

तड़प को भी तड़पते देखा
आसुओं में खुशियों को देखा
नफ़रत को प्यार में बदलते देखा
रिश्तों के मेले में,
कितनों को मिलते-बिछड़ते देखा

नाकामिओं का मंज़र देखा
डूबती उम्मीदों का समंदर देखा
वजूद की जद्दोजेहद देखी
एक जिंदगी ने,
हजारों ख्वाहिशों को मरते देखा...
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"हक़...!!!"

 तुम जो अगर, मुझ पर प्यार से.... अपना एक हक़ जता दो  तो शायरी में जो मोहब्बत है,  उसे ज़िंदा कर दूँ....  हम तो तेरी याद में ही जी लेंगे ... तु...