वो खड़ा सड़क पर नज़र लगाये,
देखता हर आने जाने वाले को
हर अनजाने से आस लगाये,
कोशिश करता कुछ पाने को
हाथ फैलाये सर झुकाए,
हर एक बात सुनता वो
मिल जाए उसे कुछ भी,
बस यही है चाहता वो
हम भी अपने धून में चलते,
पलट कर उसे न देखते
मुंह से कुछ बुदबुदाते और,
अपने रास्ते पर बढ जाते
कोई लाचार पड़ा है सड़क पर,
किन्तु हम अपनी जेब नहीं खोलते
दे देते हैं मुफ्त में गाली उनको,
सह लेते हैं सब, हैं ये मजबूरी उनकी
उनकी क्या दिवाली और होली होती है,
दो वक़्त की रोटी जुटाने में जिंदगी कटती है
दे दो जो भी उनको, अपना नसीब समझते हैं,
गाली या खाना मिल जाए उसी में खुश रहते हैं
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