Wednesday, 9 May 2012
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"हक़...!!!"
तुम जो अगर, मुझ पर प्यार से.... अपना एक हक़ जता दो तो शायरी में जो मोहब्बत है, उसे ज़िंदा कर दूँ.... हम तो तेरी याद में ही जी लेंगे ... तु...
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जब मेरा चेहरा आईने में देखा तो.. अब वो मुझसा नहीं लगता है | पर कुछ जाना पहचाना सा लगता है ... इस शहर में हर शख़्स शायद ऐसा ही दिखता है |...
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अकसर मेरा दिल --- मुझे शांत रहने को कहता है , खुद में ही खो जाऊं.. ऐसा मेरा मन भी होता है ! पर कुछ तो है तुम में जिस कारण हमेशा ये सिर्फ तुम...
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कितना खुश था मैं माँ जब मैं तेरे अन्दर था माँ इस दुनिया से बचाकर कर रखा था तुमने कितने प्यार से पाला था तुमने ...
बहुत खूब
ReplyDeleteमूर्तियां भी सजीव होंगी कभी
खड़ा हूँ किसी मूर्ति की तरह
ReplyDeleteमौसम आते हैं... मुझे छू कर गुजर जाते हैं.!!!!
Wah Wah!!!!
खड़ा हूँ किसी मूर्ति की तरह
ReplyDeleteमौसम आते हैं... मुझे छू कर गुजर जाते हैं.!!!!
Wah Wah!!!
बहुत अच्छा, बढिया लिखती हैं आप। आभार
ReplyDeleteबहुत प्यारी रचना....
ReplyDeleteसुन्दर लेखन..
अनु