है शुक्र उस मुखड़े का,
जिसकी याद की तपिश से,
इतना निखर गया हूँ मैं !
जिस मुखड़े को देख --
मुस्कुराता था मैं....
नज़रों की एक टक्कर से ही..
सिने में हलचल होती थी !
अब तो उस मुखड़े की याद से ही..
आखें भर आती हैं---
पहले जिसे अपना कहने में ...
कोई संकोच ना था ...
ज़िन्दगी कैसे जियें ---
इसका भी होश ना था...
बस उसके साथ बैठे हुए,
वक़्त गुजर रहा था !
है शुक्र कि उसकी तन्हाई ने...
मुझे जीना सिखा दिया !
अब हर मुखड़े को देख मुस्कुराता हूँ मैं..
कि उसने मुझे अब ---
खुद से प्यार करना सीखा दिया ..!!
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"हक़...!!!"
तुम जो अगर, मुझ पर प्यार से.... अपना एक हक़ जता दो तो शायरी में जो मोहब्बत है, उसे ज़िंदा कर दूँ.... हम तो तेरी याद में ही जी लेंगे ... तु...
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कितना खुश था मैं माँ जब मैं तेरे अन्दर था माँ इस दुनिया से बचाकर कर रखा था तुमने कितने प्यार से पाला था तुमने ...
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अकसर मेरा दिल --- मुझे शांत रहने को कहता है , खुद में ही खो जाऊं.. ऐसा मेरा मन भी होता है ! पर कुछ तो है तुम में जिस कारण हमेशा ये सिर्फ तुम...
सुक्र=शुक्र
ReplyDeleteबढ़िया है.
thik hai Sameer ji main use sudhar deta hun...
ReplyDeleteDhanyawaad.. aapke comments ke liye...