Sunday 15 August 2010

धुन..


जाने किसकी लगन, किसकी धुन में मगन
जा रहे थे कहाँ, मुड़कर देखा नहीं
हमने आवाज़ पर तुमको आवाज़ दी
तुम ये कहते हो, हमने पुकारा नहीं
मैं भी घर से चला हूँ, यही सोच कर
आज नज़रें नहीं, या नज़ारा नहीं..!!!

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2 comments:

"हक़...!!!"

 तुम जो अगर, मुझ पर प्यार से.... अपना एक हक़ जता दो  तो शायरी में जो मोहब्बत है,  उसे ज़िंदा कर दूँ....  हम तो तेरी याद में ही जी लेंगे ... तु...