देखते थे कितने ही खवाब हम बचपन में
खवाबों को पूरा करने की तमन्ना थी मन में
दूसरों के भी खवाबों को करते थे साकार
बिना किसी कपट को रखे अपने नियत में
अब ख़त्म हो गया है वो सारा भोलापन
हाथ कठोर हो गए बचपन को बड़ा करने में
अब तो बस इस हाथ में पत्थर ही उठते हैं
दूसरों के सपनों पर फेंकने के लिए
कितना मतलबी हो जाता है ये जवानी
प़र - सुख में शामिल होना मुश्किल होता अब
निंदा इर्ष्या का मल ह्रदय में जानू न जमा कब
हर वक़्त एक उधेड़बुन में व्यस्त रहता हूँ अब
अब कोई इच्छा नहीं रही बाकी इस जीवन से
जीवन के इस अनसुलझे जाल में उलझ गया हूँ मैं
बस इंतज़ार करता हूँ अपने बूढाप॓ का मैं
कम से कम मौत आने प़र, इस मायाजाल से मिले मुक्ति
खवाबों को पूरा करने की तमन्ना थी मन में
दूसरों के भी खवाबों को करते थे साकार
बिना किसी कपट को रखे अपने नियत में
अब ख़त्म हो गया है वो सारा भोलापन
हाथ कठोर हो गए बचपन को बड़ा करने में
अब तो बस इस हाथ में पत्थर ही उठते हैं
दूसरों के सपनों पर फेंकने के लिए
कितना मतलबी हो जाता है ये जवानी
प़र - सुख में शामिल होना मुश्किल होता अब
निंदा इर्ष्या का मल ह्रदय में जानू न जमा कब
हर वक़्त एक उधेड़बुन में व्यस्त रहता हूँ अब
अब कोई इच्छा नहीं रही बाकी इस जीवन से
जीवन के इस अनसुलझे जाल में उलझ गया हूँ मैं
बस इंतज़ार करता हूँ अपने बूढाप॓ का मैं
कम से कम मौत आने प़र, इस मायाजाल से मिले मुक्ति
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एक अच्छी रचना जो दिल को छू गयी बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteबहुत बढ़िया.
ReplyDeleteaap sabon ka dhanyawaad...
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