ऐसा कहते हैं, मौत का रंग काला होता है,
तो जिंदगी मुझे क्यों काली दिखती है
मेरा अक्स मुझसे कुछ कहना चाहता है,
हर वक़्त एक दर्द मेरे दिल में होता है
ये जिंदगी अब बोझ सी लगती है,
मौत आ नहीं रही, इसलिए जीता हूँ
ऐसे जीने में कोई संतोष नहीं होता है,
क्यों आयें हैं यहाँ, सोच कर रोता हूँ
क्यों ज़माना इतना मतलबी होता है,
दूसरों के लिए कभी वक़्त नहीं रहता है
जब मैं अपने अन्दर झांकता हूँ,
एक अजीब भयानक मंजर दिखता है
सच है जिंदा हो कर भी मर गया हूँ मैं,
इसलिए ज़िन्दगी का रंग अब काला दिखता है !!
----------*----------
जिन्दगी का रंग कभी काला नहीं हो सकता , जब भी अँधेरा होता है बस तभी उजाले की कमी हो जाती है । हाथ में कलम है , जिस रंग से लिखेंगे , उसी रंग के अक्षर चमकने लगेंगे । बेशक आपने मन की उलझन को सही शब्द दिए हैं ।
ReplyDeleteआप ठीक कहती हैं, जिंदगी का रंग काला नहीं हो सकता
ReplyDeleteकिन्तु कभी कभी ये ऐसे खेल दिखा जाती हैं कि आखों के आगे अँधेरा छा जाता है..
किन्तु कुछ क्षण के बाद फिर ये अपना इन्द्रधनुषी रंग बिखेर ही जाती है
सब समय है जो बदलता है..
आपके प्रोत्साहन के लिए शुक्रिया..
उम्मीद है कि आपको मेरे दूसरी रचनाएँ भी पसंद आएगी...
ज़िन्दगी मे हर रंग नियमानुसार आता ही है और हर रंग देखना भी तो जरूरि है…………सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete