Friday, 10 December 2010

"बढती ज़िन्दगी ..!!"

कुछ दोस्त थे जो समझते थे,
कुछ दोस्त थे जो समझाते थे |
कुछ थे जिनको कुछ सिखाता था,
कुछ थे जिनसे खुद मैं सीखता था ||

अब रह गयी बाकी कुछ एहसास---
फिर सब कुछ पहले सा कहाँ होता है ....
करता है कुछ सिकवा-शिकायत ये दिल ---
लेकिन, फिर से शामिल दुनिया में होता है ||

ना... थमेगी ये जिंदगी ....
ना यहाँ कुछ रुकता सा दिखता है |
मालूम है तुम संभल जाओगे ....
दर्द तो सिर्फ एक शायर को होता है ||
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Tuesday, 23 November 2010

"अच्छे थे हम जब बच्चे थे..!!"

एक एक करके सब अपने छूटे
सारे रिश्ते- नाते और बंधन टूटे
क्या मिला हमें बड़ा होकर
हार कर हम सबसे रूठे

तेरी ख़ुशी में ख़ुशी मनाता था
हमेशा महफिल में शामिल था
क्या थे वो मासूम से रिश्ते
जो हर दर्द मिटा जाते थे

खेले थे हम साथ साथ
साथ में दौड़ लगायी थी
ये कैसा दौड़ाया जीवन ने
कि हम साथ छोड़कर भाग गए

अच्छे थे हम जब बच्चे थे
सच्चे थे वो काम जो होते थे
झूठ - फरेब तो उम्र ने सिखाया
अब लगता है --
अच्छे ही थे जब हम बच्चे थे
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Monday, 22 November 2010

"आज पूनम की रात आई है..!!"


आज पूनम की रात आई है...
चांदनी की एक लहर ,
झरोखे से घर में घुस आई है |
ऐसा मानो जैसे रात में ,
दूध की नदी बह आई है ||

हवा चली है मद्धम मद्धम,
एक नयी खुशबू सी फ़ैल आई है |
कमरे में एक ताजगी है ,
और स्फूर्ति सी मन में छाई है ||
कि आज पूनम कि रात आई है....

खिड़की से जब बाहर देखूं...
दूर- दूर तक सड़कों पर -
एक वीरानी सी छाई है |
सारी सुन्दरता आज बस ,
उस चाँद में ही समाई है ||
कि आज पूनम कि रात आई है ....
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Thursday, 18 November 2010

"दूर...!!!"

ये एक साल घर से दूर परिवार से दूर
दोस्तों और सभी रिश्तेदारों से दूर
खुद में खोया, खुद को सोचा
पर न जाने किस उधेड़बुन में फंसा

इस अकेलेपन में मैंने समय को पार होते देखा
हर एक - एक पल मैंने इंतज़ार करके गुजारा
कुछ भी ना कर पाया हांसील इस एक साल में
सिर्फ अपने बढ़ते उम्र के सिवा

कुछ चेहरे मिट गए कुछ सूरतें बनती रहीं..
कुछ को याद बना लिया कुछ हसरतें हो गयी
आज रो रहा हूँ दूर होकर सभी अपनों से
ऐसा लग रहा है मुस्कुराने की सज़ा मिल गयी
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Wednesday, 29 September 2010

"इंसानियत..!!"

जाने कहाँ से चले थे हम
आज यहाँ तक आये हैं
मंजिल तो सभी का एक ही है
तो फिर क्यों
एक दुसरे से दौड़ लगाये हैं

बस इस जिंदगी भर का साथ है
ऊपर न भाई है, न कोई बाप है
मिट जाए जो यहाँ से वो आप हैं
पीछे रह जाए जो वो आपकी याद है

आप मानने को जो भी मानो
इश्वर मानो या अल्लाह मानो
ऊपर कौन बैठा है
ना तुम्हें पता, ना हमें पता

जानवर हमें देखते हैं
बस एक आदमजात इंसान की तरह
तो फिर हम क्यों--
एक दुसरे को देखते हैं
हिन्दू की तरह या मुसलमान की तरह

ऐसे धर्म को क्या मानना
जो हिंसा करने को सलाह दे
मानो तो इंसानियत को मानो
जो हर दूरी को मिटा दे
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Saturday, 18 September 2010

"आज फिर..!!"


आज फिर -
मैंने महसूस किया तुम्हें अपने दिल में,
तेरी खुशबू से मन में बहार आई..
तुम्हारी याद ने छुआ मुझे,
और तेरी वो रंगीन गज़ल याद आई !!

आज फिर -
जब अपने अक्स को देखा आईने में,
तो तेरी ही परछाई नज़र आई..
खो जाऊं फिर तुममे ही कहीं मैं,
और तेरी वो चांदनी रात याद आई !!
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Thursday, 16 September 2010

"वक़्त..!!"

एक सबसे बड़ा बहरूपिया देखा मैंने ...
ये चलता रहता है, कभी रुका नहीं अपने जीवन में
न जाने कितने युगों का वो, बस अकेला साक्षी है
वही तो है, जो भूत और भविष्य का ज्ञानी है
बस वही एक शाश्वत सत्य है
किसी के पास रहता है, अभिशाप की तरह और
किसी के पास रहता है, एक वरदान की तरह
कौन है जो इसे पकड़ पाया है..
इसके आगे तो भगवान ने भी शीश झुकाया है
वही है जो सब में चलते रहने की शक्ति देता है
और रिश्तों के हर घाव को भी भर देता है
कभी ये बिताये नहीं बीतता है और
कभी कोई इसका इंतज़ार भी करता है
कभी ये अच्छा होता है कभी ये बुरा होता है
पर सबके पास ये, उसका अपना होता है
ये हर किसी को उसके करनी का फल देता है
हाँ, ये वही है---
जिसे हम वक़्त, तो कोई समय और पल कहता है !!
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Thursday, 9 September 2010

"घर..!!"

घर -- वो मेरा प्यारा घर
जिसे अब शायद भूल रहा हूँ
याद है एक समय था जब
सूरज के ढलते ही घर लौट आता था
कभी रात में बाहर नहीं रुका जाता था
अपने बिस्तर पर ही नींद सुहानी आती थी
ना जाने वो सुख चैन अब कहाँ गया
भूल गया हूँ --
पिछली बार कब लौटा था अपने घर
मेरा घर मुझसे अब दूर हो गया
वो मुझसे शायद कुछ रूठ गया और
अपनी जगह छोड़ कहीं चला गया
बस उस घर की अब याद ही बसी है मन में
घर के नाम पर खाली कमरा है पास में
उसी को सजाते रहता हूँ अपने घर की तरह
किन्तु इसके गुलदस्ते से वो खुशबू नहीं आती
वो अपनापन वो रिश्ता नज़र नहीं आता
जीवन ने अपनी ऐसी करवट बदली
कि हम नींद में अब करवत बदलना छोड़ दिए
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Wednesday, 8 September 2010

"उसने..!!"

है शुक्र उस मुखड़े का,
जिसकी याद की तपिश से,
इतना निखर गया हूँ मैं !
जिस मुखड़े को देख --
मुस्कुराता था मैं....
नज़रों की एक टक्कर से ही..
सिने में हलचल होती थी !

अब तो उस मुखड़े की याद से ही..
आखें भर आती हैं---
पहले जिसे अपना कहने में ...
कोई संकोच ना था ...
ज़िन्दगी कैसे जियें ---
इसका भी होश ना था...
बस उसके साथ बैठे हुए,
वक़्त गुजर रहा था !

है शुक्र कि उसकी तन्हाई ने...
मुझे जीना सिखा दिया !
अब हर मुखड़े को देख मुस्कुराता हूँ मैं..
कि उसने मुझे अब ---
खुद से प्यार करना सीखा दिया ..!!
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Monday, 6 September 2010

"हिंदी..!!"

माँ को मॅाम, बाबूजी को पॉप बनाया,
और अपने संस्कार ही भूल गए !
पेट को पिज्जा, बुर्गेर और कोला खिलाया,
और अपना स्वादिस्ट भोजन ही भूल गए !

सभी खुद में हैं ऐसे व्यस्त कि ,
हिंदी को राष्ट्रीय भाषा बनाना भूल गए !
जींस का ऐसा चला ज़माना कि ,
स्वदेशी होने का एहसास भूल गए !

ये कैसा गुलाम बनाया कि ,
हम अपनी भाषा बोलना भूल गए !
अपने देश में ही ऐसे तिरस्कारा कि ,
हम हिंदी होने का एहसास भूल गए !
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"सोचा न था..!!"

तुम अगर मुझे सुन लेती..
तो आज जिंदगी कुछ यूँ तो न होती !
कितने सपने सजाये थे मैंने..
सोचा न था कि जीवन-नैया अकेले चलाएंगे !!

मेरे पहलू में अगर कुछ देर बैठ जाती..
तो आज ये बेचैनी कुछ यूँ तो न होती !
तुम्हारे लिए कुछ चीजें खरीदीं थी मैंने..
सोचा न था की आज वो यूँ बर्बाद हो जायेंगे !!

मेरे साथ कुछ देर तुम चल लेती..
तो आज मंजिल कुछ यूँ तो न होती !
रास्ते तो हसीन बनाये थे मैंने..
सोचा न था कि यूँ हमसफ़र बदल जायेंगे !!
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Friday, 3 September 2010

"जिंदगी का रंग..!!!

ऐसा कहते हैं, मौत का रंग काला होता है,
तो जिंदगी मुझे क्यों काली दिखती है

मेरा अक्स मुझसे कुछ कहना चाहता है,
हर वक़्त एक दर्द मेरे दिल में होता है

ये जिंदगी अब बोझ सी लगती है,
मौत आ नहीं रही, इसलिए जीता हूँ

ऐसे जीने में कोई संतोष नहीं होता है,
क्यों आयें हैं यहाँ, सोच कर रोता हूँ

क्यों ज़माना इतना मतलबी होता है,
दूसरों के लिए कभी वक़्त नहीं रहता है

जब मैं अपने अन्दर झांकता हूँ,
एक अजीब भयानक मंजर दिखता है

सच है जिंदा हो कर भी मर गया हूँ मैं,
इसलिए ज़िन्दगी का रंग अब काला दिखता है !!

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तुम !: "परछाई..!!"

तुम !: "परछाई..!!"

"परछाई..!!"

कल रात सपने में वो आई,
उसकी याद जहन में फिर यूँ समाई..
कि दिल में एक उन्स हुआ --
और आखें डब - डबाई !
उसकी अनुपस्थिति में ...
मुझे खाए है ये तन्हाई !!
जाने कहाँ चली गयी है वो,
कि उसकी कोई सन्देश न आई ..
दिल बार - बार दे ये दुहाई,
जाने कब लौट कर आये वो हरजाई !
दिन के उजाले में भी घेरे है ,
मुझे उसकी यादों कि गहराई..!
आखों के सामने आज फिर बनी है ..
उसकी भीगी सी परछाई !!!!
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Wednesday, 1 September 2010

तुम !: "अपने धुन में..!!"

तुम !: "अपने धुन में..!!"

"अपने धुन में..!!"

मैं अपने धुन में रहता हूँ,
क्यूंकि मैं भी तेरे जैसा हूँ ..
तन्हा भटक रहा हूँ - तेरी गलियों में
चुन रहा हूँ एक एक पल, इस विराने में
बाहर दिवाली हो रही है और
मेरे दीप में तेल नहीं है
मुझसे आखें मिलाये कौन
मैं तेरा आईना हूँ
सारी दुनिया देख रही है ----
लेकिन मैं तन्हा हूँ
दिल को समझाउं कैसे ---
इसलिए कभी --
रेत पर लिखता हूँ और,
कभी लिखता हूँ हवा पर ..
अकेला चल रहा हूँ जिंदगी में,
कोई नहीं है रोकने वाला ..
तेरे जैसा मैं भी हूँ मतवाला !!
इसलिए --
मैं अपने धुन में रहता हूँ.. !!!
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Monday, 30 August 2010

"जीवन एक उलझन..!!"

देखते थे कितने ही खवाब हम बचपन में
खवाबों को पूरा करने की तमन्ना थी मन में
दूसरों के भी खवाबों को करते थे साकार
बिना किसी कपट को रखे अपने नियत में

अब ख़त्म हो गया है वो सारा भोलापन
हाथ कठोर हो गए बचपन को बड़ा करने में
अब तो बस इस हाथ में पत्थर ही उठते हैं
दूसरों के सपनों पर फेंकने के लिए

कितना मतलबी हो जाता है ये जवानी
प़र - सुख में शामिल होना मुश्किल होता अब
निंदा इर्ष्या का मल ह्रदय में जानू न जमा कब
हर वक़्त एक उधेड़बुन में व्यस्त रहता हूँ अब

अब कोई इच्छा नहीं रही बाकी इस जीवन से
जीवन के इस अनसुलझे जाल में उलझ गया हूँ मैं
बस इंतज़ार करता हूँ अपने बूढाप॓ का मैं
कम से कम मौत आने प़र, इस मायाजाल से मिले मुक्ति
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Sunday, 29 August 2010

"मेरा दिल..!!"

अकसर मेरा दिल ---
मुझे शांत रहने को कहता है ,
खुद में ही खो जाऊं..
ऐसा मेरा मन भी होता है !

पर कुछ तो है तुम में
जिस कारण हमेशा ये
सिर्फ तुमसे बातें करना चाहता है
हर वक़्त इसे तेरा इंतज़ार रहता है

तुम नहीं होती हो तो
तुम्हें ढूंढता रहता है
जब तुम आती हो तो
कभी शांत न बैठता है

कुछ तो है तुम में
जो अकसर इसे हंसा जाता है
तुम सिर्फ पास बैठी रहो
बस ये खुश हो जाता है

Saturday, 21 August 2010

"ज़िन्दगी..!!"

आम आदमी की ज़िन्दगी,
क्या पूरी ज़िन्दगी है,
या अधूरी ज़िन्दगी |
कहीं न कहीं इस ज़िन्दगी का -
कुछ ठहराव तो होगा,
कहीं न कहीं इस ज़िन्दगी का-
कुछ अर्थ तो होगा |
इसके आर-पार के वजूद को,
हर किसी ने गौर से देखा होगा |
इस ज़िन्दगी को अनेकों ने अनेक बार ,
नया नाम और नया पता दिया होगा..
अनेक किताब लिखी गयीं ...
इसके फ़साने पर..
कोई अधूरी और कुछ पूरी;
मगर ज़िन्दगी के गहराई के--
फ़साने उसी तरह रह गए ,
जैसे कोरे कागज के पन्ने..!!!
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Wednesday, 18 August 2010

"गुनहगार..!!"


मैंने जब तुम्हें पहली बार देखा तो
दिल ने कहा तुम बहुत खुबसूरत हो
पर आज मैंने जाना कि...
तुम्हारे अन्दर एक और तुम है ,
जो तुमसे भी ज्यादा सुन्दर है..
मैं तो मुर्ख था, और शायद...
तुम्हारा गुनहगार भी..--
कभी तुमने---
बिलकुल कोरा काग़ज देखा है ..!
नहीं...-- तो देख लो मुझे ..
मैं भी बिलकुल ख़ाली और बेदाग़ हूँ
जिसमे कोई रंग नहीं, मायने नहीं, मकसद नहीं
दूर से तो एक जलूस सा नज़र आता है
पर नजदीक से देखता हूँ तो --
मुझे अपनी ही अर्थी नज़र आती है..!
जिसे मैं पने ही कंधे पर उठाये --
जाने कहाँ-से-कहाँ लिए जा रहा हूँ..!
सही में अब जाना---
मैं तुम्हारा सबसे बड़ा गुनहगार हूँ...!!!
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Tuesday, 17 August 2010

"लगन..!!"

मैं ना उनके नाम कि, व्याख्या करूँगा,
ना उनकी प्रशंसा करूँगा, ना तो उन्हें पुकारूँगा,
मैं तो सिर्फ टेर लगाऊंगा, मैं तो सिर्फ आवाज़ दूंगा-
वैसी ही आवाज़--
जैसे रेगिस्तान में भटकता हुआ...--प्यासा आदमी,
पानी कि बूँद को पुकारता है
और वो बूँद उन क्षणों के अन्दर---
उसका खुदा, उसका इश्वर, उसका ब्रह्म बन जाती है !!

Sunday, 15 August 2010

जाग..!!


जाग ज़ग के नव युव
जीवन बिता जा रहा है
तू कहाँ खोया है ---
अभी भी तू मंजिल खोज रहा है ...
अब रास्ते बना -- उस पथ पर --
एक दिशा में चलता जा
मंजिल करीब आएगी..!!!
अब न जागा तो कब जागेगा --
बचपन बीता बचपने में
बुढ़ापा आएगा तो आता ही जायेगा
जवानी भी क्या- यूँ ही सो कर बिताएगा
जन्म लिया है इसे सार्थक कर
मोह-माया से स्वयं को पृथक कर
जवानी महबूब की बाहों में व्यर्थ न कर
जवानी तो जोश है ---
उठ और अपनी मंजिल की ओर बढ़..!!
देख -- सारा ज़ग तुम्हें बुला रहा है
तू कहाँ भटक रहा है
जाग ज़ग के नव युव...
जीवन बीता जा रहा है...!!!!
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परिवर्तन..!!

इस बदलते ज़माने का,
अजीब ही लगता है हाल !
हर इंसान काटने में लगा है..
जिस पर बैठा है वही डाल !!

क़यामत अब न आई,
तो कब आएगी..
हालात देख कर,
शर्म को भी शर्म आएगी..!!

लोग खुद अपने आस्तीनों में,
सांप छुपाने लगे हैं.!
ज़रा देखो तो--
मय्यतों में भी...
आदमी किराए पर आने लगे हैं..!!
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धुन..


जाने किसकी लगन, किसकी धुन में मगन
जा रहे थे कहाँ, मुड़कर देखा नहीं
हमने आवाज़ पर तुमको आवाज़ दी
तुम ये कहते हो, हमने पुकारा नहीं
मैं भी घर से चला हूँ, यही सोच कर
आज नज़रें नहीं, या नज़ारा नहीं..!!!

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ख़ुशी की खोज...


ख़ुशी को कहाँ ढूंढते हो..
अपने अन्दर झांको
अंतरात्मा में बहुत चीजें हैं
जो तुम्हें ख़ुशी देंगी
तुम ख़ुशी की खोज में
बहार भटक रहे हो
तुम क्या सोचते हो
ख़ुशी का कोई खजाना बाहर है
तुम वहां पहुँच जाओगे
एक बार तुम वहां जाओगे
तब एहसास होगा
ख़ुशी कहीं और है
और तुम भटक रहे हो
ख़ुशी की खोज में..!
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१५ अगस्त


आज़ाद हुआ आज के दिन देश हमारा
इस वास्ते १५ अगस्त है जान से प्यारा
१५ अगस्त को हमें आज़ादी मिली थी
अंग्रेजी हुकूमत से हमें मुक्ति मिली थी
जिस दिन से लगा देश में जय हिंद का नारा
इस वास्ते १५ अगस्त है जान से प्यारा...!!!
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"ख़ुशी की याद.."


ख़ुशी - है जो हर कोई चाहता है..
किन्तु वास्तव में कुछ को ही मिल पाता है !!
ख़ुशी है जो हर गलत को सही कर देता है,
और इंसान बिना अफ़सोस के जीता है!!
फिर क्यूँ ख़ुशी पाने को करते हैं अत्याचार..
जब हम सभी करते हैं इसे इतना प्यार..
जीवन की सच्चाई को समझ गए अगर,
तो कम से कम ख़ुशी आएगी अपने दर..!!
ख़ुशी तो तुम में से कई के पास आती है..
और तुम्हें लगता है वो हमेशा रहे..
ख़ुशी तो तुम्हें जीना सिखाती है..
बुरे सपने के बिना नींद देती है!!
तुम्हें यदि नहीं चाहिए वो ख़ुशी..
तो मुझे दे दो वो ख़ुशी,
तुम रोओगे जब ख़ुशी जाएगी..
एहसास जब अकेलेपन का होगा..
तब ख़ुशी की याद आएगी..!!!
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ख़ुशी !!!



मैं चाहता हूँ --
ख़ुशी मुझे शक्ति दे !
ख़ुशी हमें सिखाता है,
जीवन का अर्थ क्या है !!

ख़ुशी- एक प्यारा एहसास,
एक कोमल चुम्बन !
एक सूरजमुखी -
जो जीवन को तकता है..

ख़ुशी- है सफलता की कुंजी,
जो तुम्हें हमेशा रखे ऊपर..
तुम- मेरी ख़ुशी हो..
जब मैं नाराज होता हूँ,
तुम मुझे मनाती हो...!

ख़ुशी नहीं है-
अपने जूनून को ख़त्म करने में,
ख़ुशी है -
किसी को पाने में...
जो तुम्हें प्यार दे ..!!

मुझे बस एक बात के लिए ख़ुशी है-
कि तुम हो !!
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"हक़...!!!"

 तुम जो अगर, मुझ पर प्यार से.... अपना एक हक़ जता दो  तो शायरी में जो मोहब्बत है,  उसे ज़िंदा कर दूँ....  हम तो तेरी याद में ही जी लेंगे ... तु...